Saturday, December 29, 2018

Kendai Fall



केंदई फॉल 

 Kendai is a small village but it is most famous and beautiful picnic spot on the district. There is one lovely waterfall having 75 feet height, in which water flow from Hasdeo Bango Reservoir. It is situated at a distance of 130 km from Bilaspur district and 85 km from Korba district headquarter on the Bilaspur - Ambikapur State Highway No 5 in Chhattisgarh state in India.


   photography by Indrajeet Singh Kurram on date 19/02/2011 camera Canon 600D                                                                                                                    
kendai fall

kendai fall

kendai fall

kendai fall
kendai fall



  
  छत्तीसगढ़ में एक पर्यटक स्थल है "बुका", जो की कोरबा से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ लगभग 2 घंटे लगते हैं पहुंचने में, और उससे आगे ३० किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव है "केंदई", वहां एक जल प्रपात है जिसे लोग केंदई फॉल के नाम से जानते हैं। केंदई फॉल एक खुबसूरत पिकनिक स्पॉट है जहाँ लोग अक्सर ठण्ड के मौसम में पिकनिक मनाने जाते हैं। 75 फ़ीट ऊँचे इस झरने  में पानी हसदेव बांगो डेम से आता है। 
केंदई फॉल पहुंचने के बाद अपना वाहन झरने के ऊपर वाले स्थान पर ही रखना पड़ता है, और झरने को सामने से देखने के लिए पगडंडियों से निचे उतरना पड़ता है। निचे आने पर झरने का सामने का नजारा नजर आता है। ऊंचाई से बहते झरने का पानी निचे तलहटी की ओर बह जाता है। आस पास बड़े बड़े पत्थर और चट्टान है जिन्हे देख कर लगता है की प्रकृति ने हमारे विश्राम के लिए बनाया है। झरने का पानी लगातार बहता रहता है उसका प्रवाह किसी मौसम में कम तो किसी में ज्यादा रहता है। झरने के निचे पानी ज्यादा होने के कारण झरने में नहाने का मजा नहीं ले पाते। झरने के सामने कुछ दूरी से खाई शुरू हो जाती है जो काफी निचे तक जाती है। झरने के दोनों तरफ पहाड़ दिखते है जिनमे हरे-भरे पेड़ हरियाली  का एहसास कराती है। 
केंदई फॉल देखने लोग वहां पहुंचते हैं और कुछ देर प्रकृति का नजारा ले लौट जाते हैं, तो वहीं कुछ लोग वहां पिकनिक के लिए भी जाते हैं और पूरा दिन रुक कर वही खाना बनाते और खाते हैं।  खुबसूरत है केंदई फॉल एक एकांत में प्रकृति की गोद में होने  का एहसास देती है। पर ध्यान रखें  आस पास कोई दुकान नहीं है इसलिए जरुरत के सामान साथ रखें, पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है, और साफ़-सफाई की भी कमी है। वहां जाएँ तो गहरे पानी और गहरे खाई से सावधान रहें एवं बच्चों का ध्यान रखें। 

Monday, September 3, 2018

Let's start drwing with pencil and paper

पेंसिल और पेपर से ड्राइंग शरू करें।
ड्राइंग करने के लिए एक सरफेस के रूप में पेपर लें और एक पेंसिल, और बस शुरू करें कलाकारी। शुरुआत में ज्यादा सोचने के बजाए किसी मैगजीन या किताब से फोटो देखकर उसे नकल करने की कोशिश करें। शुरुआत पेड़, पत्ती, फूल, फल आदि से करें। जितना ज्यादा हो सके प्रैक्टिस करें और यदि आप ड्राइंग को अपने हिसाब से और क्रिएटिव बना सकते है तो जरूर प्रैक्टिकल करें। दोस्तों यहाँ कुछ चित्र है जिन्हे मैंने अपने प्रैक्टिस के दौरान बनाये थे। दोस्तों जितना ज्यादा आप प्रैक्टिस करेंगे आपकी ड्राइंग उतनी ही अच्छी बनती जाएगी और एक दिन ऐसा आएगा की आप बिना किसी चित्र के नकल किये अपनी कल्पना से ही अच्छी ड्राइंग कर लेंगे।


शुरुआत में सिखने के लिए नकल करने में कोई बुराई नहीं है और उसके लिए आप कार्बन पेपर या ट्रेस पेपर लेकर किसी चित्र की कॉपी कर सकते हैं। बिंदुओं को मिलाकर लाइन या रेखा बनाया जाता है और रेखाओं को मिला कर कर्व और कोण बनाया जाता है।
एक चित्र बनाने के लिए सबसे पहले उसका विषय या सब्जेक्ट पहले चयन करें, और फिर हल्के पेंसिल से उसका एक आउटलाइन तैयार करें, तत्पश्चात डार्क लाइन खींचे। जहाँ जरुरत हो वहां हैच एवं शेड का प्रयोग करें। और जो लाइन या शेड आवश्यक ना हो उसे रबर से मिटा दें। एच टाइप के पेंसिल से पतली और हल्की लाइन बनती है और बी टाइप के पेंसिल से स्ट्रांग और डार्क लाइन बनती है। एच-बी टाइप के पेंसिल से अच्छी प्रैक्टिस हो जाती है। फल, फूल, पत्ती और पेड़ के चित्रों से शुरू करें। 
   
phool
"flowers", 19cm X 23cm, pencil on paper
"flowers", 19cm X 23cm, pencil on paper
"leaves", 19cm X 23cm, pencil on paper

"Trees", 19cm X 23cm, pencil on paper
"Fruits", 19cm X 23cm, pencil on paper

Saturday, August 18, 2018

shradhanjalee Atal Bihari Bajpayee ji

श्रद्धांजली अटल बिहारी बाजपेयी जी 

सन्देश यह क्या सुन गया, मेरा मानस पटल । 
विरक्त हो गया देह से, था जो भारत रत्न अटल । 

प्रवक्ता, वक्ता, बन कवि, देश की प्रगति को दिया बल । 
पोकरण में कर परमाणु परिक्षण, शक्ति दिया प्रबल । 

थर्रा दिया धरती को जिसने, जिनसे दुनिया गयी दहल । 
विरक्त हो गया देह से, था जो भारत रत्न अटल ।  
 
Bharat Ratan Atal Bihari Vajpayee ji


25 Dec 1924 - 16 Aug 2018


Wednesday, August 15, 2018

paisa chalta hai

paisa chalta hai
                                   पैसा चलता है 
एक आदमी बेरोजगार था और नौकरी की तलाश में बड़े शहर की तरफ निकल पड़ा। ट्रेन से उतरने पर उसे एक भिखारी मिला, जिसने बड़ी दुखी आँखों से उसे देखा और अपना हाथ उसके आगे कर दिया। उस आदमी ने कुछ सोचा और अपनी जेब से एक रुपया निकाल कर भिखारी के हाथ में रख दिया, और आगे बढ़ गया। भिखारी ने आदतन कुछ कहा और आगे बढ़ गया।भिखारी के पास एक रुपया और था, वह दो रूपये ले कर चाय वाले के पास गया और उसने दो रुपये की चाय पी ली। चाय वाले ने दो रूपये अपनी जेब में रखा और जब उस चाय वाले के पास बीस रुपये हो गए तो वह राशन की दुकान से एक किलो शक्कर ले आया। राशन दुकान में सेठ ने वह रूपये अपनी संदूक में रख लिए। सेठ के गल्ले में शाम तक हजार रूपये आ गए तो उसने उन रुपयों से तेल के पीपे ले लिए। तेल के पीपे वाले उस सेठ ने पर्याप्त पैसे हो जाने पर तेल निकालने वाली और बेचने वाली कंपनी से और माल मंगा लिया। इस तरह से उस बेरोजगार आदमी का एक रुपया एक हाथ से दूसरे हाथ होता हुआ आगे बढ़ता रहा।
उधर वह बेरोजगार आदमी काम की तलाश में दर- दर भटकता हुआ उस तेल बनाने वाली कंपनी तक पहुंच गया और उसे वहां तीन हजार रूपये महीने की नौकरी मिल गयी। काम करते -करते एक महीने बीत गए और उस आदमी को उसके काम की पहली पगार तीन हजार रूपये उसके हाथ में मिले।  रूपये हाथ में आने के बाद वो बहुत खुश हुआ और अपने इष्ट देव को धन्यवाद दे कहा " हे देव आपने आज से मुझे भी मेरी मेहनत की कमाई देना शुरू किया है, आशीर्वाद दो की मेरा यह धन अच्छे कार्यों में व्यय हो इस से  मेरा, मेरे परिवार का, मेरे समाज का, मेरे राष्ट्र का, विश्व का कल्याण हो। " इस तरह उस आदमी ने अपनी कमाई का सदुपयोग करना शुरू कर दिया। 
किसी को दिया गया धन या कहीं किया गया इन्वेस्टमेंट का एक रुपया भी कई गुना बढ़कर वापस ही मिलेगा। अगर हमने पैसे आने के बाद उसे कहीं भी इन्वेस्ट नहीं किया तो वह पैसा वहीँ रुक जायेगा वह बढ़ेगा नहीं। जिन स्थानों पर पैसों का लेन -देन जितनी तेजी से होता है वे स्थान ज्यादा प्रगति करते है अपेक्षा उन स्थानों के जहाँ पैसों का लेन देन कम होता है। 

Monday, January 15, 2018

bachpan kal, aaj aur kal


बचपन कल, आज और कल

"बचपन" इस शब्द को सुन कर मन प्रफुल्लित सा हो जाता है। मनुष्य जीवन का एक यादगार लम्हा जब वह इस सृष्टि में आ कर हॅसने-रोने के अलावा बोलना, चलना-फिरना, खेलना-कूदना आदि क्रियाओं के साथ अपने पैरों पर खड़ा होना सीखता है। बचपन की बचकानी हरकत, बचपन की शरारतें अच्छी हो या बुरी पर होती एकदम साफ मन से है। परन्तु बचपन कल और आज का बहुत बदल गया है, पहले हमारे पास समय था, हमारी इच्छाएं कम थी, हमारी परिधि कम थी, हमारी इच्छाओं का दायरा कम था, विज्ञान को समझने की कोशिश में थे, वस्तुओं के ब्रांड कम थे। इसलिए वो बचपन आज के बचपन से बिलकुल अलग था आज तेजी से बदलती इस दुनिया में किसी के पास पर्याप्त समय नहीं, खाने -पीने की ढेरों किस्में बाजार में उपलब्ध है,पर वो भूख और स्वाद नहीं, पहले हमारे पास मोबाइल नहीं था, टीवी के इतने सारे चैनल नहीं थे। सबसे बड़ी बात है की पहले किसी-किसी जगह ही कॉम्पिटिशन था, और आज हर जगह कॉम्पिटिशन देखने को मिलता है। हमारे बुजुर्गों का बचपन कैसे बिता? हमारा बचपन कैसे बिता? हमारे बच्चों का बचपन कैसे बीत रहा है? और उनके बच्चों का बचपन कैसा होगा? अगर आज इस पर ध्यान नहीं गया तो बचपन ही  समाप्त हो जायेगा। 
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है एक कच्चे मिटटी के घड़े जैसे, जिसे जिस आकर में ढालें ढल जाये। बाल मन को समझना आसान नहीं, क्योंकि एक बच्चा शब्दों-वाक्यों से परे सिर्फ भावनाओं को समझते है। कहते है बच्चों में भगवान् बसते है, और जिस प्रकार भगवान् भाव को समझते है उसी प्रकार बच्चे भी भाव ही समझते है। बाल मन को समझना आसान नहीं है फिर भी थोड़ा प्यार थोड़ा फटकार जरुरी है। बच्चों को यदि कुछ सिखाना चाहिए तो उन्हें जीवन जीने की कला सिखानी है। और जीवन को प्रकृति और प्रवृत्ति से सीखा जाना चाहिए। जिस प्रकार मौसम अलग-अलग है और प्रकृति मौसम के अनुसार व्यवहार करती है, जहाँ पतझड़ में वृक्ष अपने पत्ते त्याग देती है वहीँ पुनः बसंत में खुद को हरा -भरा कर लेती है। कभी तेज गर्मी तो कभी कड़ाके की सर्दी हर मौसम का अपना महत्व है। अगर प्रकृति में यह जलवायु परिवर्तन न हो या समय से न हो तो उसका सीधा असर अनाजों सब्जियों के पैदावार में पड़ता है, व्यक्ति के स्वास्थ पर पड़ता है। उसी प्रकार बच्चों को प्यार की जरुरत तो हमेशा रहती ही है पर उसके साथ साथ जरुरत पड़ने पर डांटना भी चाहिए, उनकी इच्छाओं की पूर्ति करना ठीक है पर इच्छाओं की अति पर लगाम होना चाहिए, उन्हें सुख सुविधाएं देना ठीक है पर उन्हें कठिन परिस्थितियों का बोध भी होना चाहिए। परन्तु आज हम क्या कर रहे है? अपने बच्चों के लिए हम बस और बस अच्छा और सबसे अच्छा ही चाह रहें है। हम चाह रहें है हमारा बच्चा सबसे अच्छे स्कूल में पढ़े, एग्जाम में वो सबसे अच्छे अंक अर्जित करे, खेल में भी सबसे आगे रहे, फिर डांस, म्यूजिक की क्लास भी जाये, टॉप के कॉलेज में एड्मिशन हो जाये, और टॉप की कंपनी में टॉप पोस्ट में सलेक्ट हो जाये। अरे बच्चा अभी ठीक से चलना भी नहीं सीख पाया है और हम उसका पूरा भविष्य देखने लग गए।अपेक्षाएं करना अच्छा है पर प्रकृति की उपेक्षा करना गलत है। एक समय था जब बच्चे लकड़ी, पत्थर, मिटटी से अपने खिलौने तलाश लेते थे, और आज कंप्यूटर टीवी और मोबाइल में गेम तलाशते है। पहले के बच्चे खेलते -खेलते पेड़ पर चढ़ जाते थे और फल तोड़कर खा जाते थे, कही भी नल में, हैंडपंप में या कुवें का पानी पीकर भी बीमार नहीं होते थे क्योंकि प्रदुषण कम था, और आज हाथ साफ कर खाने के बाद भी बीमार हो जाते है  क्योंकि प्रदुषण बहुत बढ़ गया है। हम खुद ही बच्चों को नाजुक बनाये जा रहे है जबकि प्रकृति ने उन्हें स्ट्रांग बनाये रखने की चीजें उपलब्ध करा रखी है, बस हम बच्चों को वहां पहुंचने नहीं देते। पहले बच्चे खुद ही भागते थे क्योंकि भागने में उन्हें मजा आता था, आज बच्चों को हम भगा रहें हैं ताकि वो मैडल ला सके। स्कूल में एडमिशन के समय पहले देखते थे की स्कूल पास में हो, बजट में हो सामर्थ्य में हो, और आज देखते हैं की स्कूल का मीडियम कौन सा है उसकी बिल्डिंग कितनी बड़ी है और उसका नाम कितना चल रहा है। पहले बच्चे स्कूल से निकल कर कुछ बड़ा कर जाते थे तो स्कूल का नाम रोशन होता था पर आज लोग ये सोच कर स्कूल चयन करते है की इस स्कूल से मेरे बच्चे का नाम रोशन होगा। आज के बच्चे ज्यादा तेज ज्यादा स्मार्ट है क्योकि उनको संस्कार देने वाले सिर्फ माता-पिता या गुरुजन ही नहीं बल्कि कंप्यूटर, मोबाइल और सोशल मिडिया भी उनके साथ है। 
अंत में बस इतना ही की बच्चों को केवल अच्छे साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी देना है, मंजिल उन्हें खुद चयन करने दें बस उन्हें आप राह बताएं। दुनिया में बड़े-बड़े काम करने वाले बहुत है पर याद वे ही आते है जो अच्छे काम करते है। 
                                                                                                                                                                                                                                                                            इन्द्रजीत सिंह कुर्राम