यात्रा जरुरी है जीवन में
कहते है "लुढ़कते पत्थर पर कभी काई नहीं जमती" सत्य है ,नदी में जो पत्थर स्थिर है उन पर तो अक्सर काई जम जाती है, परन्तु जो पत्थर नदी में लुढ़कता रहता है न केवल काई विहीन होता है, वरन चमकीला व सुन्दर आकर का भी हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है की यदि मनुष्य भी नदी में लुढ़कते इस पत्थर के भांति स्वयं को नदी रूपी जीवन धारा में गतिशील रखे तो वह अपने विचारों को एक अच्छा आकार दे सकता है, ज्ञान में वृद्धि कर सकता है एवं अपनी अंतरात्मा में चमक उत्पन्न कर सकता है। बहने या लुढ़कने का मतलब यह नहीं की हम भी नदी में बहने लगें या जमीन लुढ़कने लगें। बहने और लुढ़कने का मतलब है गतिशील रहना, कर्मशील रहना, प्रयास करते रहना। माँ के गर्भ से एक बच्चा संसार में एक लम्बी यात्रा कर पहुँचता है और इस संसार में उसकी आगे की यात्रा शुरू हो जाती है। घर से विद्यालय तक का सफर, विद्यालय से महाविद्यालय तक का सफर, महाविद्यालय से अच्छे व्यवसाय तक का सफर, और एक अच्छे व्यवसाय से एक अच्छी पहचान तक का सफर, और ये सफर तब तक चलता रहता है जब तक व्यक्ति गतिशील, कर्मशील रहकर सफलता के लिए प्रयास करता रहता है। मानव मन में जो कुछ भी उपजता है वह उसे प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हो जाता है, उसके लिए वो विचारशील हो जाता है, उस विचार को कार्यान्वित करने के लिए क्रियाशील हो जाता है और उस कार्य के प्रगति से स्वयं को प्रगतिशील करता है। किसी को ज्ञान, कला, प्रेम,सुख, शांति रूपी प्यास क्रियाशील करती है तो किसी को धन-दौलत, नाम, ऐश्वर्य, समृद्धि, वर्चस्व, सत्ता रूपी प्यास क्रियाशील करती है। अतः वह व्यक्ति ज्यादा श्रेष्ठ है जो गतिशील रहता है अपेक्षा उस व्यक्ति के जो स्थिर हो जाता है जो न तो अपने शरीर के सामर्थ्य का उपयोग करता है न ही अपनी बुद्धि का। और जो व्यक्ति इस संसार में प्रगतिशील रहता है, जो हमेशा अपने उद्देश्य की ओर बढ़ता रहता है वह एक यात्री है, वह यात्रा कर होता है।
" A TRAVELER ON TRAVEL " Pencil color on paper size 8" X 11" on 2019 |
जीवन की इस धारा में यात्री बनो और यात्रा करो, यात्रा करो ज्ञान के सागर में, यात्रा करो अनुभव की किताब में, यात्रा करो मन की पुकार की ओर, बस यात्रा करो। जीवन में यात्रा का बहुत महत्त्व है, यह हमें कुछ दिखाती है, कुछ सिखाती है, कुछ एहसास कराती है और हमारी अंतरात्मा को खंगालती है जिससे हमें सुख दुःख, सही गलत की अनुभूति होती है। यात्रा होती है विचारों की, यात्रा होती है अनभिज्ञता से ज्ञान की ओर, यात्रा होती है अन्धकार से प्रकाश की ओर, यात्रा होती है निर्धनता से सम्पन्नता की ओर, यात्रा होती है नास्तिकता से आस्तिकता की ओर। इसीलिए संसार में हुए सफल लोगों का इतिहास, महापुरुषों का इतिहास यात्राओं से भरा पड़ा है। जितनी बड़ी या महान विचार मनुष्य के मन में होगी, वहां तक पहुंचने का मार्ग भी उतनी ही कठिन और समय लेने वाली होगी। इस संसार में हमारी यात्रा का प्रारम्भ बिंदु कहाँ था, हम प्रायः भूल जाते हैं और यात्रा का अंतिम पड़ाव कहाँ है, इसके बारे में भी विचार नहीं करते पर फिर भी हम चलते रहते है, यात्रा करते रहते हैं।
" TAKE REST WHILE TIRED " Pencil color on paper size 8" X 11" on 2019 |
हर मानव एक यात्री है और हर मानव के विचार एवं उद्देश्य भिन्न है और इसीलिए सबकी यात्रा की दिशा अलग - अलग होती है परन्तु अक्सर लोग एक बने बनाये मार्ग का ही चयन कर उस ओर चलते है, जबकि कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो अपना मार्ग स्वयं बनाते हैं।
जिस प्रकार विचारों का कोई अंत नहीं है उसी प्रकार यात्रा का भी कोई अंत नहीं है, तो बस यात्रा करो। थक जाओ तो हे मानव थोड़ा विश्राम करो, अपने किये यात्रा को स्मरण करो, उसका आकलन करो और उसे अपने ज्ञान और अनभवों में शामिल करो फिर अपने उद्देश्य को याद करो और तरोताजा हो फिर उठो, चलना शुरू करो और यात्रा करो। इन्द्रजीत सिंह कुर्राम