बात उन दिनों की है जब मै बेरोजगारी का अनुभव प्राप्त करते किसी नौकरी की तलाश में भटक रहा था। एक कंपनी थी जिसमे औजार बनते थे, वहां 1500 रूपए प्रति माह पर बात हो गयी। वहां मै केवल दो दिन ही काम पर गया, न पैसे कम ही थे न काम में कोई तकलीफ थी, फिर भी वहां मन नहीं लगा। अब फिर मै बेरोजगार था। एक मित्र की सहायता से मै एक स्कूल में पढ़ाने लगा 700 रूपए प्रति माह में। साइकिल से स्कूल जाता बच्चों को पढ़ाता और घर आकर खुद पढता। यहाँ पैसे कम जरूर थे परन्तु काम मेरे लिए संतोष दायक था, यहाँ मुझे दो सप्ताह हुए थे की एक मित्र की सहायता से मुझे एक दूसरा काम मिल गया। एक थर्मल पावर प्लांट तैयार हो रहा था इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रिसिपिटेटर बनाने वाली एक कंपनी थी, मै वहां एक ठेकेदार के नीचे काम करने लगा। यहाँ पर मुझे 3000 रूपए प्रति माह तय किया गया। यहाँ से ही मुझे एक महीने काम करने पर 3000 रूपए मिले। कॉमिक्स किराये पर देकर, फोटोग्राफी कर और ट्यूशन देकर पैसे तो पहले भी बनाए थे परन्तु यह 3000 रूपए मेरी पहली कमाई थी। यहॉ भी मैं दो-तीन महीने ही काम कर पाया था और मन कुछ और करने को मचल रहा था अतः मैंने वह जॉब भी छोड़ दी और एक बैंक में एजेंट के रूप में काम करने लगा। बैंक का काम करते-करते मैंने न्यूज़-पेपर पर एक एड देखा और वहाँ बायो-डेटा लेकर चला गया और इंटरव्यू में सलेक्ट हो गया।
जब मैं इस जॉब के लिए रायपुर शहर के लिए निकला मेरे पास 1500 रुपए थे। घर से 200 किलो-मीटर दूर मैं जॉब करने आ गया।
मैं अपने सामान के साथ सीधे कंपनी में गया और ड्यूटी ज्वाइन कर काम में लग गया, मैंने अपने रहने की समस्या का किसी से जिक्र नहीं किया और शाम को ड्यूटी समाप्त होने पर मैं अपने सामान के साथ निकल पड़ा रहने का ठिकाना ढूंढने। मैं अस्थाई रहने के लिए किसी सस्ते से सस्ते लॉज की तलाश में था। सामान लिए चलते -चलते मैं थक गया था, तभी एक रिक्शा मेरे पास आकर रुका। लड़के ने मुझसे पूछा "कहाँ जायेंगे भैया " मैंने कहा "नहीं ! … कहीं नहीं जाना है, मैं लॉज ढूंढ रहा हूँ " उसने कहा "चलिए न भैया मैं छोड़ दूंगा, कौन से लॉज में जायेंगे ?" मैंने कहा "देखो अगर किसी सस्ते से लॉज में ले जा सकते हो तो बताओ" उसने बैठने को कहा तो मैंने किराया पूछा, उसने तीस रूपए कहा मैंने कहा बहुत ज्यादा है, और मै आगे बढ़ने लगा तो उसने कहा भैया पच्चीस रूपये दे देना, मैंने कहा बीस रुपये में चलना है तो चलो, वह राजी हो गया और मैं रिक्शा में बैठ गया। मैं रिक्शा में बैठा और थोड़ी दूर गया तो उससे पूछा "तुम्हारा नाम क्या है ?" उसने अपना नाम आर्यन बताया। उसके बारे में मैंने और जानकारी ली, उसने बतया वह ओडिशा से आया है और यहाँ पर उसके और भी रिलेटिव्स कुछ न कुछ काम धंधे में है। चलते-चलते उसने भी मुझसे पूछा भैया आप कहाँ से आये है, आपको यहाँ कुछ काम है क्या ? मैंने कहा मै यहीं छत्तीसगढ़ का हूँ, और यहाँ पर काम के सिलसिले में आया हूँ। वह मुझे पास के ही एक लॉज में ले गया वहां 300 रुपये प्रति दिन किराया था, मैंने मना कर दिया। इसी तरह तीन-चार लॉज में हमने पता किया कहीं 300 तो कहीं 250 रुपये किराया था। मैंने आर्यन से कहा "देखो आर्यन मेरे पास ज्यादा पैसे है नहीं और मुझे यहाँ कितने दिन रुकना पड़े पता नहीं। मुझे 100 रुपये किराया तक का लॉज चलेगा, पर शायद यह संभव नहीं, तुम एक काम करो मुझे रेलवे स्टेशन पर ही छोड़ दो मै रात वहीँ बिताऊंगा।" आर्यन ने कहा "भैया आप परेशान हो रहे हैं, रेलवे स्टेशन में आप सुरक्षित नहीं रहेंगे वहां पर आपका सामान चोरी हो सकता है और पुलिस वाले भी परेशान करते हैं। अच्छा एक काम करते है यहाँ से थोड़ी दूर मंत्रालय के पास मेरी माँ का होटल है वहां चल कर पहले खाना खाते हैं फिर माँ से कह कर कुछ बंदोबस्त करवाता हूँ।" मैं सोच रहा था की ये लड़का क्यों मुझे मेरे हाल पर छोड़ नहीं देता, क्यों ये मेरी समस्या के समाधान ढूंढ रहा है, इसमें जरूर इसका कोई स्वार्थ होगा, शायद किराया ज्यादा बनाने की सोच रहा होगा या कही ये मुझे ठगने के बारे में तो नहीं सोच रहा है। चलो जो भी हो मेरे पास कोई भी कीमती सामान तो है नहीं,ये सोचते मै उसके साथ चलता रहा और उससे बात कर उसके बारे में जानने की कोशिश करने लगा।
आर्यन ओडिशा के एक छोटे से गांव का था उसने जैसे-तैसे बारहवीं तक की पढाई पूरी कर ली थी। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण आज उसे इस शहर में आ कर रिक्शा चलाना पड़ रहा था। यहाँ उसके गावं के और भी लोग थे जो किराये में रिक्शा ले कर अपनी जीविका चला रहे थे। वह भी अच्छी नौकरी करना चाहता था ,पर यह इतना आसान नहीं है जितना आसान सरकारी लेखा-जोखा में दर्शाया जाता है की स्कूल-कॉलेज की संख्या बढ़ गयी है, बेरोजगारी दर घट गयी है, लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर मिल रहे है। वास्तविकता इन सरकारी आंकड़ों से कोसों दूर है। पूछने पर उसने बताया की वह भी रात में देसी दारु पीया करता है क्योंकि दिन भर शारीरिक परिश्रम से वो इतना थक जाता है की बिना पीये नींद ही नहीं आती। ये दारू भी अच्छी है जो भूत को भुलाने का काम करती है, भविष्य के चिंताओं को हरती है और वर्तमान में अच्छी आराम देती है।
मंत्रालय के बॉउंड्री वाल से लगे एक छोटे से गुमटी पर रिक्शा रुका, टीन और पोलीथीन से बने इस गुमटी में ही आर्यन की माँ का भोजनालय था जहाँ लोग सस्ते में खाना खाते थे। आर्यन ने अपनी माँ से खाना लगाने को कहा, उसकी बहन ने मुझे एक थाली में खाना परोस दिया। खाना स्टार वाले होटलों की तरह तो नहीं था परन्तु भूख भी लगी थी और 15 रुपये में इतना खाना की पेट को सुकून दे, बुरा भी तो नहीं था। मेरे खाना खाते तक आर्यन ने अपनी माँ को मेरी समस्या से अवगत करा दिया था। उसकी माँ मुझे पास के ही एक एस.टी.डी.-पी.सी.ओ. के दुकान ले जाकर एक लॉज में फ़ोन लगाया, वहां एक कमरा खाली था। आर्यन को उसकी माँ ने पता दिया और मै रिक्शा में फिर चल पड़ा। हम लॉज में पहुंचे वहां 80 रुपये प्रति दिन किराया था, पर कुछ ही देर पहले कमरा बुक हो गया था। मैंने लॉज वाले से पूछा क्या कल मुझे कमरा मिल जायेगा तो उसने कहा हाँ। मैंने वहां पास में ही एक दूसरा लॉज देखा 120 रुपये प्रति दिन किराया था, कमरा ले कर सामान वहां रख कर मै निचे आर्यन के पास आया और उससे बोला "थैंक्स आर्यन तुमने मेरी आज बहुत मदद की है मेरी रहने की समस्या हल हो गयी है अब कल से मै यहाँ किराये का कमरा ढूंढ़ना शुरू कर दूंगा। अच्छा अब बताओ तुम्हारा किराया कितना हुआ।" आर्यन ने कहा "भैया किराया रहने दो, आप इस शहर में नए-नए आये हो और अभी आपके रहने-खाने की उचित व्यवस्था भी नहीं है।" मुझे शर्मिंदगी हुई पहले वह मेरे लिए सिर्फ एक रिक्शा वाला था पर अब वह एक भाई एक दोस्त था। "फिर भी जो किराया बोला था वह तो ले लो " कह कर मैंने उसके हाथ में 30 रूपये रख दिए। आर्यन ने मुझे अपने घर के पास के एक दुकान का फ़ोन नम्बर दिया और अपना पूरा पता एक कागज पर लिख कर दिया और कहा की यदि उसके लिए भी कोई नौकरी हो तो बताये। आर्यन फिर मिलेंगे भैया कह कर चला गया और मै उसके बारे में सोचता लॉज के कमरे की तरफ बढ गया।
दूसरे दिन मै काम पर गया फिर किराये में एक दस बाई दस का कमरा 800 रूपये महीने में देख कर वापस लॉज आ गया। दूसरे दिन लॉज छोड़ कर मै किराये के कमरे में आ गया। और ऑफिस के काम के दौरान पिकअप में सामान शिफ्ट करते वक़्त तेज हवा के झोकों ने मेरे कमीज की जेब से कुछ कागज हवा में उड़ा दिए। उन कागजों के खो जाने का एहसास मुझे देर से हुआ और उन कागजों में ही तो आर्यन का फ़ोन नम्बर और पता था जो अब मुझसे खो गया था। और एक हफ्ते ही मुझे बिलासपुर के ऑफिस में भेज दिया गया। मै आर्यन से दुबारा नहीं मिल पाया पर वो आज भी मुझे याद है।