Friday, September 5, 2014

flower-002

Flower-002 indrajeet singh kurram

Flower-001

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ishwar ek manshik samasya

ईश्वर एक मानसिक  समस्या 

                       हाँ,यह सत्य है कि ईश्वर आज उनके लिये एक मानसिक समस्या ही बनती जा रही है,जो इसे जानते नहीं समझतें नहीं। जिस प्रकार कस्तूरी मृग कस्तूरी की खोज में वन-वन भटकती रहती है,जबकि कस्तूरी तो उसके नाभि मे हीं मिलताहै, उसी प्रकार मनुष्य भी अन्यत्र स्थानोँ पर ईश्वर को तलाशता है जबकि ईश्वर तो उनकें मन मे, ह्रदय मे बसे होते हैं। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो वे ईश्वर को अपने ह्रदय मे और हर प्राणी के ह्रदय मे ढूंढने के बजाय अन्यत्र स्थानो पर ढूंढते हैं? मनुष्य ईश्वर के सबसे करीब रहकर भी उनसे कोसों दूर क्यों है?
                       ईश्वर वह श्रद्धा है, वह मान-सम्मान है, वह विश्वास है जो हमेँ अपने माता-पिता, गुरुजनो और श्रेष्ठ महापुरुषों के लिये आदर भाव सिखाती है, सम्मान सिखाती है, प्रेम सिखाती है। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही जो मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारे जाते हैं और पूजा-अर्चना तो करते हैं परन्तु अपने माता-पिता, गुरुजनो, पूर्वजों और श्रेष्ठ महापुरुषों का  सम्मान नहीं करते? माता-पिता के वृद्ध होने पर उन्हे बोझ समझते हैं, गुरुजनों की अवहेलना करते हैं और अपने पूर्वजों को याद भी नहीं करते?
                     ईश्वर वह विश्वास है जो हमें खुद पर विश्वास ऱखने को कहतीं है, हमें अच्छे कार्यों के अच्छे परिणाम के लिये आशान्वित करतीं है। धैर्य धारण करने को कहती है और सफलता के लिये प्रेरित करती है। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो सफलता प्राप्त करने के लिये कोई भी रास्ता अख्तियार कर लेते हैं? उन्हें अपनी ईमानदारी और मेंहनत वाला रास्ता ज्यादा कठीन, दुख भरा और लँबा लगनें लगता है। लोग जल्दी ही अपना धैर्य खो बैठते हैं उन्हे असफल होने का भय हमेशा बना रहता है, कई तो असफलता के डर से अपना कार्य ही शुरू नहीं करते क्योंकी उनकों स्वयं पर विश्वास ही नहीं होता है।  
                         ईश्वर वह मार्ग है जो हमें सत्य और अहिंसा अपनाने को कहती है।प्रेम से रहने और प्रेम ही बांटने को कहती है। सुख-दुःख में एक दूसरे का साथ देने को कहती है। गलतियों को क्षमा करने को कहती है। काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहँकार का त्याग करने को कहती है।तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो खुद को आस्तिक कहते हैं और झूठ, बैर और अपशब्द का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। दूसरे के सुख और ऐश्वर्य से जलते हैं। सामने वाले को खुश देखकर खुद को दुखी कर लेते हैं। क्षमा के बजाय बदले की भावना रखते हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहँकार को अपने से अलग ही होने नही देते। 
                            ईश्वर सबसे श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है, सबसे ऊँचा, अनन्त विस्तृत है। वह विशाल से विशालतम और सूक्ष्म से सूक्ष्तम है। ईश्वर तेरा या मेरा नही है वह तो सबका है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्ति मान है। और ईश्वर तो एक ही है तो क्यों उसे व्यक्तियों द्वारा विभाजित कर दिया गया है? क्यों आज लोग धर्म के नामों पर लड रहें हैं? क्यों हिन्दु, मुश्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौध्ध आदि अनेकोँ धर्म अपने हि अस्तित्व को स्वीकार करने को अडिग हैं? यदि अब इस धरती पर कोई महायुद्ध होगा तो संभवतः वह धर्म के नाम पर ही होगा।ईश्वर तो हमें मानवता के धर्म को स्वीकार करने को कहते हैं, मानव को मानव से प्रेम करने को कहते हैं, दुखियों की मदद करने को कहते हैं, बीमारों कि सेवा करने को कहते हैं, एकता के साथ रहने को कहते हैं। तो क्या यह सब मात्र किताबी बातें है।  क्यों ! क्यों हम आज धर्म को खंड-खंड कर रहें हैं? क्यों अमीरों और गरीबों के बीच में एक गहरी खाई क निर्माण कर रहेँ हैं? क्यों आदमी ही आदमी के खून का प्यासा हो जाता है? कहीं दंगे, कहीं आतंकवाद, कहीं नक्सलवाद, कहीं चोरी, कहीं डकैती, कहीँ अपहरण, कहीं फिरौती तो कहीं बलात्कार क्यों व्याप्त हो रहेँ हैँ।   
                      आखिर कब पूरा संसार एक ही सूत्र में बंध पायेगा? कब हम सभी अपने आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ मानवता, प्रेम और त्याग के लिये समर्पित कर पाएंगे। ईश्वर को नाम से नही बल्कि उनके आदर्शों से पहचान करेंगे। हर प्राणी के अन्दर शैतान रूपी राक्षस और भगवान रूपी देव वास करता है, अब यह प्राणी के ही ऊपर है कि वह अपने शैतान प्रवृत्ति को उजागर करे या देव प्रवृत्ति को। हमें जाति , रंग , नस्ल के भेद -भाव में न पड़ कर सभी को एक हो जाना चाहिए और ईश्वर को अपने मन में, मन से,  मन के भीतर देखना चाहिए।
                                                                                     *इन्द्रजीत सिंह कुर्राम

                                                                                                                                                                              http://indrajeetart.blogspot.com/2014/09/ishwar-ek-manshik-samasya.html

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