Thursday, November 6, 2014

HE MANAV

                                              हे मानव 

                   हे मानव, तु अपनी पहचान बना। इस श्रृष्टि में तेरा भी अवतार हुआ है, किसी न किसी कार्य के लिये, कुछ न कुछ उद्देश्य की पूर्ति के लिए। बस यही सोच कर तू अपने प्रत्येक कार्य को अंजाम दे। तू अपने से बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त कर, कनिष्ठों मे स्नेह की वर्षा कर और अपने मित्रों से मित्रवत हो जा। कभी भी किसी का दिल न दुखा, किसी से कटु या असत्य वचन न कह, न क़िसी से रूठना ना किसी को रुठने देना। यह जिंदगी बहुत ही छोटी है, हर पल समय हमारे हांथों से फिसलती रेत क़ी तरह फिसलती जातीं है। समय एक सा कभी नहीं होता, वह तो परिवर्तनशील है। भूत, भविष्य से परे अपने वर्तमान को सुन्दर बनाओ।
                  हे मानव तु केवल भौतिक सुख की लालसा में न पड़कर मानसिक एवँ हार्दिक सुख के साथ जीवन व्यतीत कर। जो भौतिक सुख आज तुम्हारी है, हो सकता है कल किसी और का हो जाये, परन्तु जो तुम्हारे मन के, ह्रदय के भीतर है वो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है। हे मानव जितना ध्यान तुम अपने मान-सम्मान का रखते हो उससे ज्यादा दूसरों के मान-सम्मान का रखो। कोशिश करो की हमसे कुछ ऐसा कार्य ना हो जाये जिसके लिए हमें आत्मग्लानि की अनुभूति होने लगे। क्रोध भी मनुष्य का स्वभाव है, परन्तु जहाँ तक हो सके अपने क्रोध पर नियंत्रण रखो अन्यथा व्यर्थ के विवाद ही सामने आएंगे। दूसरों की गलतियों में उनके इरादों को न ढूंढो क्योंकि मनुष्य गलतियों से भी कुछ न कुछ सीखता है। हे मानव तुम सब से प्रेम करो क्योंकि कोई जन्म से बुरा नहीं होता, परिस्थिति और माहौल उसे बुरा बना देती है, उसे सुधार सको तो सुधारो। अर्थात हे मानव तुम अपना जीवन सुधारो और इस श्रृष्टि में अपनी एक उत्कृष्ट छबी बनाओ।
                                                                                          इन्द्रजीत सिंह कुर्राम http://indrajeetart.blogspot.com/2014/09/he-manav.html

Friday, September 5, 2014

flower-002

Flower-002 indrajeet singh kurram

Flower-001

flower-001 indrajeet singh kurram

ishwar ek manshik samasya

ईश्वर एक मानसिक  समस्या 

                       हाँ,यह सत्य है कि ईश्वर आज उनके लिये एक मानसिक समस्या ही बनती जा रही है,जो इसे जानते नहीं समझतें नहीं। जिस प्रकार कस्तूरी मृग कस्तूरी की खोज में वन-वन भटकती रहती है,जबकि कस्तूरी तो उसके नाभि मे हीं मिलताहै, उसी प्रकार मनुष्य भी अन्यत्र स्थानोँ पर ईश्वर को तलाशता है जबकि ईश्वर तो उनकें मन मे, ह्रदय मे बसे होते हैं। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो वे ईश्वर को अपने ह्रदय मे और हर प्राणी के ह्रदय मे ढूंढने के बजाय अन्यत्र स्थानो पर ढूंढते हैं? मनुष्य ईश्वर के सबसे करीब रहकर भी उनसे कोसों दूर क्यों है?
                       ईश्वर वह श्रद्धा है, वह मान-सम्मान है, वह विश्वास है जो हमेँ अपने माता-पिता, गुरुजनो और श्रेष्ठ महापुरुषों के लिये आदर भाव सिखाती है, सम्मान सिखाती है, प्रेम सिखाती है। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही जो मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारे जाते हैं और पूजा-अर्चना तो करते हैं परन्तु अपने माता-पिता, गुरुजनो, पूर्वजों और श्रेष्ठ महापुरुषों का  सम्मान नहीं करते? माता-पिता के वृद्ध होने पर उन्हे बोझ समझते हैं, गुरुजनों की अवहेलना करते हैं और अपने पूर्वजों को याद भी नहीं करते?
                     ईश्वर वह विश्वास है जो हमें खुद पर विश्वास ऱखने को कहतीं है, हमें अच्छे कार्यों के अच्छे परिणाम के लिये आशान्वित करतीं है। धैर्य धारण करने को कहती है और सफलता के लिये प्रेरित करती है। तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो सफलता प्राप्त करने के लिये कोई भी रास्ता अख्तियार कर लेते हैं? उन्हें अपनी ईमानदारी और मेंहनत वाला रास्ता ज्यादा कठीन, दुख भरा और लँबा लगनें लगता है। लोग जल्दी ही अपना धैर्य खो बैठते हैं उन्हे असफल होने का भय हमेशा बना रहता है, कई तो असफलता के डर से अपना कार्य ही शुरू नहीं करते क्योंकी उनकों स्वयं पर विश्वास ही नहीं होता है।  
                         ईश्वर वह मार्ग है जो हमें सत्य और अहिंसा अपनाने को कहती है।प्रेम से रहने और प्रेम ही बांटने को कहती है। सुख-दुःख में एक दूसरे का साथ देने को कहती है। गलतियों को क्षमा करने को कहती है। काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहँकार का त्याग करने को कहती है।तो क्या यह उनके लिए एक मानसिक समस्या नही है जो खुद को आस्तिक कहते हैं और झूठ, बैर और अपशब्द का अत्यधिक प्रयोग करते हैं। दूसरे के सुख और ऐश्वर्य से जलते हैं। सामने वाले को खुश देखकर खुद को दुखी कर लेते हैं। क्षमा के बजाय बदले की भावना रखते हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहँकार को अपने से अलग ही होने नही देते। 
                            ईश्वर सबसे श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है, सबसे ऊँचा, अनन्त विस्तृत है। वह विशाल से विशालतम और सूक्ष्म से सूक्ष्तम है। ईश्वर तेरा या मेरा नही है वह तो सबका है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्ति मान है। और ईश्वर तो एक ही है तो क्यों उसे व्यक्तियों द्वारा विभाजित कर दिया गया है? क्यों आज लोग धर्म के नामों पर लड रहें हैं? क्यों हिन्दु, मुश्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौध्ध आदि अनेकोँ धर्म अपने हि अस्तित्व को स्वीकार करने को अडिग हैं? यदि अब इस धरती पर कोई महायुद्ध होगा तो संभवतः वह धर्म के नाम पर ही होगा।ईश्वर तो हमें मानवता के धर्म को स्वीकार करने को कहते हैं, मानव को मानव से प्रेम करने को कहते हैं, दुखियों की मदद करने को कहते हैं, बीमारों कि सेवा करने को कहते हैं, एकता के साथ रहने को कहते हैं। तो क्या यह सब मात्र किताबी बातें है।  क्यों ! क्यों हम आज धर्म को खंड-खंड कर रहें हैं? क्यों अमीरों और गरीबों के बीच में एक गहरी खाई क निर्माण कर रहेँ हैं? क्यों आदमी ही आदमी के खून का प्यासा हो जाता है? कहीं दंगे, कहीं आतंकवाद, कहीं नक्सलवाद, कहीं चोरी, कहीं डकैती, कहीँ अपहरण, कहीं फिरौती तो कहीं बलात्कार क्यों व्याप्त हो रहेँ हैँ।   
                      आखिर कब पूरा संसार एक ही सूत्र में बंध पायेगा? कब हम सभी अपने आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ मानवता, प्रेम और त्याग के लिये समर्पित कर पाएंगे। ईश्वर को नाम से नही बल्कि उनके आदर्शों से पहचान करेंगे। हर प्राणी के अन्दर शैतान रूपी राक्षस और भगवान रूपी देव वास करता है, अब यह प्राणी के ही ऊपर है कि वह अपने शैतान प्रवृत्ति को उजागर करे या देव प्रवृत्ति को। हमें जाति , रंग , नस्ल के भेद -भाव में न पड़ कर सभी को एक हो जाना चाहिए और ईश्वर को अपने मन में, मन से,  मन के भीतर देखना चाहिए।
                                                                                     *इन्द्रजीत सिंह कुर्राम

                                                                                                                                                                              http://indrajeetart.blogspot.com/2014/09/ishwar-ek-manshik-samasya.html

Squirals

Flowers

Sleeping Baby

Wednesday, July 23, 2014

NATURE-6

Tuesday, April 8, 2014

NATURE-5

Tuesday, March 11, 2014

KRISHNA

KRISHNA
INDRAJEET SINGH KURRAM
14.8" X 16.5"
ACRYLIC ON CANVAS
2012

http://indrajeetart.blogspot.com/2013/11/krishna.html

NATURE

NATURE
INDRAJEET SINGH KURRAM
18" X 24"
POSTER COLOR ON PAPER
1999

http://indrajeetart.blogspot.com/2013/10/nature.html

GANESH

GANESH
INDRAJEET SINGH KURRAM
15.75" X 15.75"
COLOR PENCIL ON PAPER
BALL PEN USES IN LINES
2002
http://indrajeetart.blogspot.com/2013/10/ganesh.html

LOVE